पहिले मूल अद्वैत में, भाेम जहाँ इश्क । तहाँ प्रेम रबद में, भया हुकम हक ।।
अब कहाें फेर के, मूल मिलावे की वीतक । जैसी अाज्ञा धनी की, साे बातां बुजरक ।।
श्री महामति कहें एे साथजी, शास्त्र कहे याें कर । अागे अपनी वीतक, साे लिजाे चित्त धर ।।
ता ऊपर अाैरङ्गजेब, ए कलिजुग के नाम । अागे अवतार हाेयगा, बुद्ध कलकी इस ठाम ।।
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काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निंद्रा तथैव च । अल्पाहारी, सदाचारी एतद विद्यार्थिन पंच लक्षणं ।।
काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निंद्रा तथैव च । अल्पाहारी, सदाचारी एतद विद्यार्थिन पंच लक्षणं ।।...read more
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